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Monday, April 26, 2021

योग करें निरोग


योगा अभ्यास की आध्यात्मिक तथा स्वास्थ्य संबंधी उपयोगिता सर्वत्र सिद्ध है। योग से कुछ रोगों की सफल चिकित्सा की जा रही हैं विभिन्न योग संस्थानों में हो रहे शोध कार्यों से लगभग अधिकांश रोगों की चिकित्सा की जा रही है। योग अब चिकित्सा पद्धति के रूप में स्थापित होता जा रहा है।


योग विज्ञान के ऐतिहासिक, दार्शनिक, समाज वैज्ञानिक तथा शैक्षणिक पक्षों पर अनुसंधान किया जाना चाहिए। वैसे तो योग अध्यात्म का विषय है किन्तु इस समय योग विज्ञान के विकास की मुख्य धारा स्वास्थ्य-विज्ञान की दिशा में पहुंच गयी है। मनुष्य की शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक तथा बौद्धिक अवस्था को स्वास्थ्य कहते हैं। आधुनिक समय में होने वाले अधिकांश रोग मनुष्य तथा उसके पर्यावरण के बीच तालमेल (सामंजस्य) न बन पाने के कारण ही उत्पन्न होते हैं। योगाभ्यास मनुष्य के मनोदैहिक व्यवस्था में तालमेल की क्षमता प्रदान करके उसे तमाम रोगों से बचाता है।


‘योग’ कोई धार्मिक प्रवृत्ति या क्रिया नहीं है। यह वैज्ञानिक साधना पद्धति है। जिसका उद्देश्य मानव का सर्वांगीण विकास है। यह अपने आप में एक गहन दर्शन तथा व्यापक विज्ञान है और इसकी साधना अनुपम कला है। इसके बहुआयामी उद्देश्य हैं। इसलिए इसकी साधना-पद्धति भी बहुआयामी है। भगवद्गीता में ज्ञान कर्म और भक्ति मार्ग से योग-साधना की अवधारणा प्रस्तुत की गयी है।


पतंजलि योगदर्शन में अष्टांग योग साधना का बहुत व्यापक वर्णन है। अष्टांग योग के सभी आठ अंगों का यथा सम्भव समुचित अभ्यास ही सम्यक योग साधना है। अष्टांग योग के प्रथम दो अंग यम और नियम सद्वृत्ति साधना के विषय हैं। ये चित्त तथा शरीर शुद्धि के माध्यम हैं और योगावस्था प्राप्त करने के महत्वपूर्ण मार्ग हैं।

आसन मुख्य रूप से शरीर की साधना है। पतंजलि ने आसन के विषय में लिखा है- ‘स्थिर सुखमासनम्’ अर्थात् आसन उसे कहते हैं, जो साधक के लिए सुखदायी और स्थिरता प्रदान करने वाला हो।

योगाभ्यास स्त्री और पुरुष दोनों लोगों के लिए हैं, परन्तु स्त्रियों को ऋतुकाल तथा गर्भावस्था में योगाभ्यास बंद कर देना चाहिए अथवा केवल चिकित्सक के परामर्श से योग का अभ्यास करें।


बच्चों को 12 वर्ष की आयु के पूर्व शुभंगासन, अर्धशलभासन, धनुरासन, हलासन, पश्चिमोत्तासन तथा योगमुद्रा करनी चाहिए। 12 वर्ष के बाद अन्य और आसन कराये जायें। योगाभ्यास के लिए स्वच्छ, शांत तथा हवादार स्थान आवश्यक है। यौगिक चिकित्सा में आहार-विहार का विशेष महत्व है। योगाभ्यासी को आहार-विहार के नियंत्रण का पालन करना चाहिए। योग शास्त्र में कम भोजन की महत्ता को बल दिया गया है। अस्वस्थ और बीमार लोगों को चिकित्सक के परामर्श बिना योगाभ्यास नहीं करना चाहिए।


अधिकांश रोगों का इलाज ‘योग’ से सम्भव है। योग मानव जाति के उत्थान के लिए है। इससे रोग दूर होते हैं, लेकिन जो निरोगी व्यक्ति योग का अभ्यास करता है, वे तो बीमार नहीं होते।

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Quotes

1. Never tell everyone everything. Even with your family. 2. Be mature enough not to take anything personally. Be less reactive. 3. Don'...