Wednesday, April 28, 2021

कोई एक चीज घर में रखकर देखें, पलट जाएगी किस्मत, निखरेगा भविष्य........

नई दिल्ली: ऐसा माना जाता है कि मेहनत और कठिन परिश्रम की वजह से ही इंसान को उसकी मंजिल प्राप्त होती है। 
जो जीवन में सफल होना चाहता है, कुछ  हासिल करना चाहता है, उसके लिए कोई शॉर्ट कट नहीं है। परिश्रमी व्यक्ति अपने पुरुषार्थ से जीवन के हर उद्देश्य को पा लेता है।

वैसे तो ये बात शत-प्रतिशत सच है, लेकिन कई बार ऐसा होता है जो अत्याधिक मेहनत करने के बाद भी बहुत से लोग सफलता से दूर रह जाते हैं, या फिर कई तो ऐसे भी होंगे जिन्हें ऐसा अवसर ही नहीं मिल पाता जो उसे आगे बढ़ा सके। इस मामले में तो मेहनत या लगन भी कोई फायदा नहीं पहुंचा पाती।
अगर आपके साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है, अपनी मेहनत का उचित परिणाम नहीं मिल रहा है या फिर अभी तक एक बेहतरीन अवसर की ही तलाश कर रहे हैं तो हम आपको वास्तुशास्त्र से संबंधित कुछ ऐसी वस्तुओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आपके लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकती हैं।
 विभिन्न जॉब या व्यवसाय में कार्यरत लोगों के लिए वस्तुएं अलग-अलग हैं।

गाय के बछड़े की मूर्ति
अपना आपका काम (जॉब या व्यवसाय) खानपान से संबंधित है, मसलन खाद्य पदार्थों की दुकान, किराने की दुकान आदि तो आपको अपने बेडरूम में गाय और बछड़े की मूर्ति रखनी चाहिए। इससे आपका काम और अच्छा हो जाएगा।

ज्वेलरी का काम
अगर आप सोने या चांदी के सामानों/गहनों का काम करते हैं तो आपको अपने बिजनेस को चमकाने के लिए अपने शयन कक्ष में चांदी से बना मोरपंख टांगना चाहिए।

कपड़ा व्यवसाय
अगर आप कपड़े का काम करते हैं, कपड़े की दुकान, फैकट्री या फिर सप्लाई से जुड़े हैं तो वास्तुशास्त्र के अनुसार अपके लिए लाल रंग का दुपट्टा काम कर जाएगा। आपको अपने कमरे में लाल रंग का दुपट्टा टांगना चाहिए।

ऑटोमोबाइल का व्यापार
अगर आप किसी वाहन के शोरूम या दुकान के मालिक हैं तो आपको वहां कांस्य का बना एक परामिड रखना चाहिए। अगर किसी वजह से कांस्य का पिरामिड नहीं बनवा पा रहे हैं तो लकड़ी का पिरामिड अपने कार्यक्षेत्र में रखें।

इलेक्ट्रिक शॉप
अगर आप बिजली के उपकरण या गैजेट से संबंधित कोई व्यवसाय या जॉब करते हैं तो आपको अपने बेडरूम में क्रिस्टल का विंडचाइम टांगना चाहिए। ये आपके व्यवसाय को नई ऊर्जा प्रदान करेगा।

व्यापार में परेशानी
अगर आप अपने बिजनेस को लेकर परेशान हैं, किसी कारणवश आपको लगातार नुकसान ही झेलना पड़ रहा है तो आपको अपने बेडरूम में लकड़ी की बांसुरी रखनी चाहिए। वहीं अगर आप अपने कॅरियर में निखार लाना चाहते हैं तो आपको अपने बेडरूम में सूर्यदेव की मूर्ति अवश्य रखनी चाहिए।

जूतों का व्यवसाय
अगर आप जूते या लेदर से संबंधित किसी व्यवसाय से जुड़े हैं, तो आपके लिए काले रंग का शो पीस बहुत काम का है। आपको अपने बेडरूम में काले रंग का कोई शोपीस अवश्य रखना चाहिए।
(पंडित. अतुल कुमार दूबे)

नोट: हम इस लेख की सटीकता, पाठन सामग्री और निहित जानकारी की विश्वसनीयता की गारंटी नहीं देते। हमारा उद्देश्य आपको इन उपायों व तथ्यों (विभिन्न माध्यमों, धर्मग्रंथों, और ज्योतिष ज्ञानियों से प्राप्त) की महज जानकारी देना है, आपको अपने विवेकानुसार किसी मत को धारण करना चाहिए। हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।

Monday, April 26, 2021

योग करें निरोग


योगा अभ्यास की आध्यात्मिक तथा स्वास्थ्य संबंधी उपयोगिता सर्वत्र सिद्ध है। योग से कुछ रोगों की सफल चिकित्सा की जा रही हैं विभिन्न योग संस्थानों में हो रहे शोध कार्यों से लगभग अधिकांश रोगों की चिकित्सा की जा रही है। योग अब चिकित्सा पद्धति के रूप में स्थापित होता जा रहा है।


योग विज्ञान के ऐतिहासिक, दार्शनिक, समाज वैज्ञानिक तथा शैक्षणिक पक्षों पर अनुसंधान किया जाना चाहिए। वैसे तो योग अध्यात्म का विषय है किन्तु इस समय योग विज्ञान के विकास की मुख्य धारा स्वास्थ्य-विज्ञान की दिशा में पहुंच गयी है। मनुष्य की शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक तथा बौद्धिक अवस्था को स्वास्थ्य कहते हैं। आधुनिक समय में होने वाले अधिकांश रोग मनुष्य तथा उसके पर्यावरण के बीच तालमेल (सामंजस्य) न बन पाने के कारण ही उत्पन्न होते हैं। योगाभ्यास मनुष्य के मनोदैहिक व्यवस्था में तालमेल की क्षमता प्रदान करके उसे तमाम रोगों से बचाता है।


‘योग’ कोई धार्मिक प्रवृत्ति या क्रिया नहीं है। यह वैज्ञानिक साधना पद्धति है। जिसका उद्देश्य मानव का सर्वांगीण विकास है। यह अपने आप में एक गहन दर्शन तथा व्यापक विज्ञान है और इसकी साधना अनुपम कला है। इसके बहुआयामी उद्देश्य हैं। इसलिए इसकी साधना-पद्धति भी बहुआयामी है। भगवद्गीता में ज्ञान कर्म और भक्ति मार्ग से योग-साधना की अवधारणा प्रस्तुत की गयी है।


पतंजलि योगदर्शन में अष्टांग योग साधना का बहुत व्यापक वर्णन है। अष्टांग योग के सभी आठ अंगों का यथा सम्भव समुचित अभ्यास ही सम्यक योग साधना है। अष्टांग योग के प्रथम दो अंग यम और नियम सद्वृत्ति साधना के विषय हैं। ये चित्त तथा शरीर शुद्धि के माध्यम हैं और योगावस्था प्राप्त करने के महत्वपूर्ण मार्ग हैं।

आसन मुख्य रूप से शरीर की साधना है। पतंजलि ने आसन के विषय में लिखा है- ‘स्थिर सुखमासनम्’ अर्थात् आसन उसे कहते हैं, जो साधक के लिए सुखदायी और स्थिरता प्रदान करने वाला हो।

योगाभ्यास स्त्री और पुरुष दोनों लोगों के लिए हैं, परन्तु स्त्रियों को ऋतुकाल तथा गर्भावस्था में योगाभ्यास बंद कर देना चाहिए अथवा केवल चिकित्सक के परामर्श से योग का अभ्यास करें।


बच्चों को 12 वर्ष की आयु के पूर्व शुभंगासन, अर्धशलभासन, धनुरासन, हलासन, पश्चिमोत्तासन तथा योगमुद्रा करनी चाहिए। 12 वर्ष के बाद अन्य और आसन कराये जायें। योगाभ्यास के लिए स्वच्छ, शांत तथा हवादार स्थान आवश्यक है। यौगिक चिकित्सा में आहार-विहार का विशेष महत्व है। योगाभ्यासी को आहार-विहार के नियंत्रण का पालन करना चाहिए। योग शास्त्र में कम भोजन की महत्ता को बल दिया गया है। अस्वस्थ और बीमार लोगों को चिकित्सक के परामर्श बिना योगाभ्यास नहीं करना चाहिए।


अधिकांश रोगों का इलाज ‘योग’ से सम्भव है। योग मानव जाति के उत्थान के लिए है। इससे रोग दूर होते हैं, लेकिन जो निरोगी व्यक्ति योग का अभ्यास करता है, वे तो बीमार नहीं होते।

ऑक्सीजन की कमी क्यों? क्या हवा में सांस लेने योग्य ऑक्सीजन नहीं, जानें विस्तार से.....

कोरोना की दूसरी लहर ने हमारी सभी तैयारियों की कलाई खोलकर रख दी है। अस्पतालों में बेड और दवा तो दूर, मरीजों को ऑक्सीजन भी नहीं मिल रही। हालात इतने गंभीर हो गए हैं कि सरकार 50 हजार मीट्रिक टन ऑक्सीजन खरीदने के लिए दुनिया के बाजार में खड़ी है। ऐसे में लोगों के मन में तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं कि आखिर हम सब हवा में सांस लेते हैं और वह हमारे चारों ओर मौजूद है...तो क्यों नहीं हम इस हवा को सिलेंडरों में भरकर मरीजों को लगा देते? आखिर अस्पतालों में पाइप से आने वाली ऑक्सीजन यानी मेडिकल ऑक्सीजन है क्या? यह बनती कैसे है? और क्यों इसकी कमी है?





तो आइये जानते हैं ऐसे सभी सवालों के जवाब...


प्र. मेडिकल ऑक्सीजन क्या है?

कानूनी रूप से यह एक आवश्यक दवा है जो 2015 में जारी देश की अति आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल है। इसे हेल्थकेयर के तीन लेवल- प्राइमरी, सेकेंडरी और टर्शीयरी​ के लिए आवश्यक करार दिया गया है। यह WHO की भी आवश्यक दवाओं की लिस्ट में शामिल है।

प्रोडक्ट लेवल पर मेडिकल ऑक्सीजन का मतलब 98% तक शुद्ध ऑक्सीजन होता है, जिसमें नमी, धूल या दूसरी गैस जैसी अशुद्धि न हों।


प्र. हमारे चारों ओर हवा है और हम उसमें ही सांस लेते हैं, ऐसे में उसे ही हम सिलेंडरों में क्यों नहीं भर लेते?

हमारे चारों ओर मौजूद हवा में मात्र 21% ऑक्सीजन होती है। मेडिकल इमरजेंसी में उसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। इसलिए मेडिकल ऑक्सीजन को खास वैज्ञानिक तरीके से बड़े-बड़े प्लांट में तैयार किया जाता है। वह भी लिक्विड ऑक्सीजन।


प्र. मेडिकल ऑक्सीजन कैसे बनाई जाती है?

मेडिकल ऑक्सीजन बनाने के तरीके को समझने के लिए पहले कुछ बातों को जानना जरूरी है...


बॉयलिंग पॉइंट


जिस तरह पानी को 0 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा करने पर वह जमकर बर्फ या ठोस बन जाता है और 100 डिग्री सेल्सियस तक गर्म करने पर उबलकर भाप यानी गैस में बदल जाता है, ठीक ऐसे ही हमारे आसपास मौजूद ऑक्सीजन, नाइट्रोजन आदि इसलिए गैस हैं क्योंकि वह बेहद कम तापमान पर उबलकर गैस बन चुकी हैं।

ऑक्सीजन -183 डिग्री सेल्सियस पर ही उबलकर गैस में बदल जाती है।

यानी पानी का बॉयलिंग पॉइंट 100 डिग्री सेल्सियस है तो ऑक्सीजन का -183 डिग्री सेल्सियस।

दूसरे शब्दों में कहें तो अगर हम ऑक्सीजन को -183 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा ठंडा कर दें तो वह लिक्विड में बदल जाएगी।



अब बात मेडिकल ऑक्सीजन बनाने के तरीके की...


मेडिकल ऑक्सीजन हमारे चारों ओर मौजूद हवा में से शुद्ध ऑक्सीजन को अलग करके बनाई जाती है।

हमारे आसपास मौजूद हवा में 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीजन और बाकी 1% आर्गन, हीलियम, नियोन, क्रिप्टोन, जीनोन जैसी गैस होती हैं।

इन सभी गैसों का बॉयलिंग पॉइंट बेहद कम, लेकिन अलग-अलग होता है।

अगर हम हवा को जमा करके उसे ठंडा करते जाएं तो -108 डिग्री पर जीनोन गैस लिक्विड में बदल जाएगी। ऐसे में हम उसे हवा से अलग कर सकते हैं।

ठीक इसी तरह -153.2 डिग्री पर क्रिप्टोन, -183 ऑक्सीजन और अन्य गैस बारी-बारी से तरल बनती जाएंगी और उन्हें हम अलग-अलग करके लिक्विड फॉर्म में जमा कर लेते हैं।

वायु से गैसों को अलग करने की इस टेक्नीक को हम क्रायोजेनिक टेक्निक फॉर सेपरेशन ऑफ एयर कहते हैं।


इस तरह से तैयार तरल ऑक्सीजन  99.5% तक शुद्ध होती है।

यह पूरी प्रक्रिया बेहद ज्यादा प्रेशर में पूरी की जाती है ताकि गैसों का बॉयलिंग पॉइंट बढ़ जाए। यानी बहुत ज्यादा ठंडा किए बिना ही गैस लिक्विड में बदल जाए।

इस प्रक्रिया से पहले हवा को ठंडा करके उसमें से नमी और फिल्टर के जरिए धूल, तेल और अन्य अशुद्धियों को अलग कर लिया जाता है।



प्र. ऑक्सीजन अस्पतालों तक पहुंचती कैसे है?


मैनुफैक्चरर्स इस लिक्विड ऑक्सीजन को बड़े-बड़े टैंकरों में स्टोर करते हैं। यहां से बेहद ठंडे रहने वाले क्रायोजेनिक टैंकरों से डिस्ट्रीब्यूटर तक भेजते हैं।

डिस्ट्रीब्यूटर इसका प्रेशर कम करके गैस के रूप में अलग-अलग तरह के सिलेंडर में इसे भरते हैं।

यही सिलेंडर सीधे अस्पतालों में या इससे छोटे सप्लायरों तक पहुंचाए जाते हैं।

कुछ बड़े अस्पतालों में अपने छोटे-छोटे ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट हैं।


प्र. अगर हवा से ऑक्सीजन बनती है और इसे सिलेंडरों से मरीजों तक पहुंचाया जा सकता है तो उसकी कमी क्यों है?

  • केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल का कहना है कि कोरोना महामारी से पहले भारत में रोज मेडिकल ऑक्सीजन की खपत 1000-1200 मीट्रिक टन थी, यह 15 अप्रैल तक बढ़कर 4,795 मीट्रिक टन हो गई।
  • ऑल इंडिया इंडस्ट्रियल गैसेज मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (AIIGMA) के अनुसार 12 अप्रैल तक देश में मेडिकल यूज के लिए रोज 3,842 मीट्रिक टन ऑक्सीजन सप्लाई हो रही थी।
  • तेजी से बढ़ी मांग के चलते ऑक्सीजन की सप्लाई में भारी दिक्कत हो रही है।
  • पूरे देश में प्लांट से लिक्विड ऑक्सीजन को डिस्ट्रीब्यूटर तक पहुंचाने के लिए केवल 1200 से 1500 क्राइजोनिक टैंकर उपलब्ध हैं।
  • यह महामारी की दूसरी लहर से पहले तक के लिए तो पर्याप्त थे, मगर अब 2 लाख मरीज रोज सामने आने से टैंकर कम पड़ रहे हैं।
  • डिस्ट्रीब्यूटर के स्तर पर भी लिक्विड ऑक्सीजन को गैस में बदल कर सिलेंडरों में भरने के लिए भी खाली सिलेंडरों की कमी है।

प्र. किसी इंसान को कितनी ऑक्सीजन की जरूरत होती है?

एक वयस्क जब वह कोई काम नहीं कर रहा होता तो उसे सांस लेने के लिए हर मिनट 7 से 8 लीटर हवा की जरूरत होती है। यानी रोज करीब 11,000 लीटर हवा। सांस के जरिए फेफड़ों में जाने वाली हवा में 20% ऑक्सीजन होती है, जबकि छोड़ी जाने वाली सांस में 15% रहती है। यानी सांस के जरिए भीतर जाने वाली हवा का मात्र 5% का इस्तेमाल होता है। यही 5% ऑक्सीजन है जो कार्बन डाइऑक्साइड में बदलती है। यानी एक इंसान को 24 घंटे में करीब 550 लीटर शुद्ध ऑक्सीजन की जरूरत होती है। मेहनत का काम करने या वर्जिश करने पर ज्यादा ऑक्सीजन चाहिए होती है।


प्र. स्वस्थ इंसान एक मिनट में कितनी बार सांस लेता है?

एक स्वस्थ वयस्क एक मिनट में 12 से 20 बार सांस लेता है। हर मिनट 12 से कम या 20 से ज्यादा बार सांस लेना किसी परेशानी की निशानी है।


Thursday, April 8, 2021

जब मंजिले टूटने लगे, हौसले डगमगा जाए, तब एक बार जरूर पढ़े 👏






अक्सर जीवन में असहजता उत्पन्न हो जाती है, प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में ऐसी घडियां आती हैं जब अपमान होने से, आर्थिक स्थिति खराब होने से, बीमारी बढ़ जाने से, गृह क्लेश से, व्यापार में घाटा हो जाने से । संतान की असफलता से या अकस्मात, अकारण किसी आघात की विपरीत स्थिति से व्यक्ति के मस्तिष्क में एक अजीब सी निराशा का जन्म हो जाता है। उसके मन में तनाव के कारण विनाशकारी तत्व उत्पन्न हो जाते हैं। जो व्यक्ति के हौसले को तोड़ने लगते हैं। 

फिर, मन में बुरे विचार आने लगते हैं कि अब कुछ नहीं हो सकता, मैं कुछ नहीं कर सकता। मेरा कोई वजूद नहीं, मेरा कोई अपना नहीं है। जब आपका बुरा समय आता है कोई साथी साथ नहीं देता, पैसा पास नहीं रहता है, और अगर है भी तो निष्प्रयोज्य लगता है, और मन टूटने लगता है।


सबके जीवन में हैं चुनौतियां, मुश्किलें


ऐसी कठिन स्थिति व्यक्तिगत ही नहीं संस्थागत या संगठन के सामने भी आ जाती हैं। लेकिन ऐसे समय में अपना ही नहीं बल्कि, पूरे दल का मनोबल बनाए रखना होता है। ऐसे समय में आगे बढ़कर नेतृत्व करना ही व्यक्ति का कर्तव्य होता है। तनाव के अंधेरों में लोगों को डूबने न दें, हर स्थिति में उनकी हिम्मत बनाए रखें।


जिस नेल्सन ने नेपोलियन को वाटर लू में हराया था, वह व्यक्ति वाटर लू के युद्घ से पहले एक और देश पर चढ़ाई करने गया था। पानी के जहाजों को किनारे पर लगाया और नियम के मुताबिक सबसे पहले सेनापति धरती पर उतरा, लेकिन जैसे ही सेनापति ने पहला कदम रखा वह ठोकर खाकर गिर पड़ा। सैनिक एक-दूसरे की तरफ देखने लगे। इशारा करने लगे कि यह तो शगुन ही बिगड़ गया। अब तो हमारी हार निश्चित है। सेनापति ने यह दृश्य देखा तो जहाज से सब सैनिकों को नीचे उतारा और पंक्ति में खड़ा किया।

नेल्सन ने अपनी सेना को संबोधित करते हुए कहा - ‘‘देखो मित्रो! परमात्मा हमारे साथ है और उसका आशीर्वाद हमें आते ही मिल गया। उसका संकेत यह है कि इस देश की भूमि, भगवान ने आते ही हमारे हाथों में दे दी। इसलिए मैंने आते ही गिरकर दोनों हाथों से जमीन थामी है। इसका मतलब हम ही जीतेंगे और ये जमीन हमारी ही होने वाली है।’’

यह कह चुकने के बाद उसने सोचा कि हो सकता है कुछ लोग गद्दारी या कायरता मन में ले आए हों। इसलिए उसने तोपों से अपने जहाज उड़ा दिये। उसने फिर कहा, ‘‘मित्रों! अब पीछे हटने का मार्ग नष्ट हो चुका है। मेरा विश्वास है तथा प्रभु का आशीर्वाद है जीत हमारी ही होगी। प्रभु का ही आदेश है कि जमीन को थाम ले, जल्दी से इसलिए उन्होंने धरती मुझे इस प्रकार जोर से पकड़वाई।’’ कहने को ये सिर्फ शब्द थे पर शायद इन्हीं शब्दों का प्रभाव था कि कमजोर पड़ रहे सैनिकों की शक्ति दस गुनी हो गई और उनकी जीत हुई।

इस कहानी का अर्थ यह है कि मानव जीवन में कई अवसर ऐसे आते हैं जब निराशा घेर लेती है। सभी स्थितियां विपरीत नजर आती हैं। ऐसी स्थिति में स्वयं का, अपने परिवार का तथा अपने दल का हौसला बढ़ाए, धैर्य धारण करें। आपकी सफलता निश्चित है।


धैर्य से काम लें.....

कहा भी गया है, "लहरें आती हैं तो आए, हम भी पत्थर बन सामना कर लेंगे"। यहां जड़ पत्थर से अभिप्राय है, उस कठोर तपस्या और धैर्य का समागम जो ऊंची लहरों को भी झेल ले। ईश्वर हमको रगड़ता है और परखता है। इसलिए फौजी भाइयों में एक वाक्य बड़ा प्रचलित है, "जितना रगड़ा उतना तगड़ा"

 अतः सब्र रखें परिस्थितियां अवश्य बदलेंगी, क्योंकि परिवर्तन समाज का नियम है और हम उसी समाज का हिस्सा हैं।


Best

शायरी

ऐसा था नहीं जैसा अब मैं बन गया हूं , चलते चलते एक जगह थम गया हूं  लोगों के विचार में फसा एक झमेला हूं मैं, तूझे लगता है कि मैं खुश हूं, पर म...