Thursday, June 11, 2020

हॉन्ग कॉन्ग, ताइवान के साथ भारत पर चीन की बुरी नजर, भारत की सुरक्षा परिषद के चुनाव पर

चीन की साम्यवादी सरकार लगातार विस्तार की योजना पर कार्य कर रही है। चीन में बढ़ते जनसंख्या दबाव के कारण वहां भुखमरी, गरीबी, लाचारी आदि समस्याओं के साथ लोगो का संघर्ष जारी है। चीन से ही जन्म लेने वाली कोरो ना जैसी वैश्विक महामारी के इस दौर में भी चीनी कम्युनिस्ट सरकार की बुरी नज़र हांगकांग, और ताइवान पर है। मीडिया में चल रही खबरों की मानें तो चीन हांगकांग में चल रहे विरोध प्रदर्शन को दबाने के जुगाड खोजने में लगा हुआ है और वहां की सेना हर हाल में हांगकांग को स्वायत शासित क्षेत्र बनने से रोकना चाहती है। 

हॉन्गकॉन्ग सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जो जुलाई 1997 तक ब्रिटेन द्वारा शासित था। इसके बाद से यहां चीन का शासन  है। हॉन्गकॉन्ग एक प्राद्योगिकी संपन्न क्षेत्र होने के कारण सुदृढ है। यहां की प्रति व्यक्ति आय भी चीन से अधिक है और कई विदेशी कंपनियों के आफिस यहां स्थित है। हॉन्गकॉन्ग में चीन जबरदस्ती अपना कानून थोपना चाहता है, जिससे वहां के लोग इसे आज़ाद देश घोषित करना चाहते हैं।
पर आर्थिक तौर पर बेहद मजबूत होने के कारण चीन की बुरी नजरे इसपर बनी रहती है।
यहां होने वाले विरोध प्रदर्शनो को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी दबा देती है।


इसी तरह दक्षिण चीन सागर में चीन की गतिवधियों के कारण वियतनाम और फिलीपींस से पुराना विवाद है।
जापान के समुद्री क्षेत्र में चीन की गतिवधियां भी कभी कभी तनातनी का कारण बनती हैं।
इसी विस्तारवादी श्रृंखला में ताइवान पर चीन का कब्ज़ा एक कड़ी है, जिसे समझना ज़रूरी है। ताइवान विश्व की सबसे मजबूत अर्थवयवस्थाओं में से एक है और यहां करीब 210 खरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है। यहां चाय, केला, जूट, हल्दी, शकरकंद जैसे कृषि उत्पाद पैदा होते है। यह क्षेत्र पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के भंडार से भरा हुआ है, इस लिए चीन के लिए विशेष महत्व रखता है।


ताइवान में कई तरह के उद्योग है जैसे मार्बल, कोयला खनन, शीशा, कपड़ा, प्लास्टिक, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, लोहा इस्पात और फूड प्रोसेसिंग इकाईया आदि। ताइवान संयुक्त राष्ट्र का सदस्य नहीं है और इसे मान्यता भी नहीं मिली है । इसलिए चीन इसके सामरिक और आर्थिक महत्व को देखते हुए पूरी तरह हासिल करना चाहता है।
चीन में अकेले 1300 से अधिक कंपनियां कार्य कर रही हैं, जो चीन - अमेरिकी ट्रेड वार के कारण भारत में आना चाहती है।
यह बात चीन को खटक रही है और उसने भारत में फिर से आवाजाही शुरु कर दी है। ताजा मामला लद्दाक में ग्लवान नाले और फिंगर फोर पर चीन के सैनिकों का भारतीय सीमा में 2 किमी अंदर आने का है। डोकलाम (सिक्किम) में विवाद के बाद गत 5 मई 2020 को पेंगोंग झील के पास चीनी सैनिकों ने घुसपैठ की, और सीमा के पास ही तंबू गाड़ डाले। जवाब में भारतीय सेना ने भी अपने चार हजार सैनिक तैनात कर डाले हैं।  इस विवाद के निपटारे के लिए अब तक दो तीन बार मेजर जनरल स्तर की बातचीत हो चुकी है, पर देखते हैं कि युद्ध की तनातनी जैसी स्थिति में आगे आने वाले दिनों में क्या निष्कर्ष निकाला जाता है।
चीन की विस्तारवादी नीति को तोड़ने के लिए सामूहिक तौर पर उसके बायकॉट की जरूरत है। प्रसिद्ध शिक्षाविद, पर्यावरविद् और सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने इसके लिए कई उपाय बताए है जिसमें चीन के बने सभी उत्पादों का सामूहिक त्याग और तिरस्कार मुख्य है।
लेकिन मोटे तौर पर कहे तो चीन से सभी देशों को सावधान और सतर्क रहने की जरूरत है। चीन को कूटनीतिक स्तर पर पटखनी देने के लिए भारत का सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता ज़रूरी है। चीन का स्थाई समाधान बेहद जरूरी हो चुका है, क्योंकि नाथूला(सिक्किम), उत्तराखंड, लद्दाख और अक्साई चीन में चीनी सैनिकों की घुसपैठ बार बार हो रही है। चीन द्वारा वीडियो से युद्ध आधारित प्रोपगेंडा फैलाया जा रहा है, जिसे कठोर जवाब मिलना आवश्यक है। 
देखने वाली बात होगी की आने वाले कुछ दिनों में क्या हल निकल कर आता है। 

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