Sunday, April 7, 2024

शायरी

ऐसा था नहीं जैसा अब मैं बन गया हूं , चलते चलते एक जगह थम गया हूं 
लोगों के विचार में फसा एक झमेला हूं मैं, तूझे लगता है कि मैं खुश हूं, पर मेरे दिल से पूछ कितना अकेला हूं मैं 

Monday, March 25, 2024

लघु कथा

कड़ी मेहनत और सब्र का फल
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बात 2019 के जनवरी की है, मेरी मां मिर्ची🌶️ का पौधा ले आई। जिनमें करीब 20 छोटे पौधे शामिल थे। अब उनको गमले और खाली ज़मीन में लगा दिया।


कुछ तो स्वयं सूख गए, कुछ जिंदा रहे, तमाम उपाय किए कभी इस जगह कभी यहां कभी वहां कभी जैविक खाद तो कभी लकड़ी का बुरादा और आज ये फल 🌶️ एक हरी मिर्च, प्रकृति भी अजीब है, दो साल तक सिंचाई और दो साल बाद सिर्फ एक फल, सब्र का फल🤓🙂

जितने यत्न किए प्रयत्न करे उतने ही देरी से निकला यह फल।

निष्कर्ष: सब्र का फल कभी कभी तीखा भी होता है।😂😂


•अतुल दूबे "सूर्य"
•गोरखपुर

स्त्री का प्रेम और संवेदनाएं

🌷🌿स्त्री कर सकती है प्रेम, बिना वासना की माँग किये, वो अलग आधार ढूँढती है प्रेम का!!
यदि, हम उसकी सारी संवेदनाएँ दूर से समझ लें तो वो स्वयं को तुप्त महसूस करती है और पुरुष द्वारा की गई हिंसा को भी प्रेम के रुप में स्वीकारती है,

लेकिन हम जब उसको तौलने लगते है अपने जज़्बातों से तो वो प्रेम की इस काल्पनिक दुनिया से निकलकर खुद को एकांत रखना चाहती है और अपने प्रेम को कभी मैला नही होने देती🌷🌿

इसलिए स्त्री का प्रेम करना अदभुत है, क्योंकि वह संवेदनाओं को वश में कर सकती है और समय पर उजागर भी कर सकती है!! वह रंभा भी है और मां भी, वह सृजन करती है, और इस संसार को धारण कर मां धरती कहलाती है 🙏

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