Thursday, July 9, 2020

श्रीकृष्ण ने अपनी गुरू माता को दक्षिणा स्वरूप मृत पुत्र को पुनः जीवित कर दिया

श्री कृष्ण जी और उनके बड़े भाई बलराम अपनी शिक्षा के लिए गुरु गर्ग की अनुशंसा पर सांदीपनि के आश्रम में पहुंचे और कुछ ही दिनों में दोनों भाइयों ने सभी विद्याएं सीख ली। 
तत्पश्चात् , दोनों शिक्षा पूर्ण होने पर गुरू दक्षिणा देने हेतु अपने आचार्य और गुरू माता के पास पहुंचे।
गुरू माता से श्री कृष्ण जी ने कहा कि " माता अपने हमारी गुरुकुल शिक्षा में हमें मां की तरह पाला है, अतः आपको बिना दक्षिणा दिए हमारी विद्या अधूरी मानी जाएगी और घर लौटने से पहले हम आपको वचन देते हैं कि आपकी दक्षिणा स्वरूप सभी इच्छा पूरी करेंगे।"
गुरूजी और गुरूमता ने उन्हें दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया और कहा -  "शिष्य, तुम हमारी इच्छा पूरी नहीं कर सकते हो, अतः हम तुम्हे वचन से मुक्त करते हैं।" और फिर उनकी आखों में जल भर आया और वह रोने लगी।
यह सब दृश्य देख कृष्ण जी ने कहा - "गुरूजी, हम अपने वचन के लिए प्रतिबद्ध हैं और ऐसा कोई कार्य नहीं जो अब हम पूर्ण नहीं कर सकते" ।

उन्होंने अपनी गुरुमाता से कई बार कहा कि अपनी इच्छा प्रकट करे। लेकिन , उन्होंने रुदन स्वर में कहा मेरी इच्छा कोई पूरी नहीं कर सकते है, इसलिए मत पूछो।
यह सुन कृष्ण जी ने प्रण लिया कि, अब जब तक वह उनकी इच्छा पूरी नहीं कर लेते वह अपने घर नहीं जाएंगे।
उन्होंने पुनः उनकी इच्छा विनम्रता से पूछी। तब उन्होंने कहा - तो सुनो हमारा एक ही पुत्र था जो जवानी में मर गया। क्या तुम उसे वापस लाकर दे सकते हो !!!!! उसे समुद्र खा गया।

श्री कृष्ण स्तब्ध रह गए, और उन्होंने अपने गुरू ऋषि संदिप मुनि से उसकी मृत्यु का कारण पूछा ?
सांदीपनि ने बताया कि - "हमारा पुत्र का नाम पुनर्दत्त था, और वर्षों पहले एक बार हम सभी स्नान करने के लिए समुद्र किनारे पर पहुंचे, समुद्र की एक बड़ी लहर आयी औेर हमारा पुत्र समुद्र की गहराइयों में कहीं डूब गया और फिर कभी न लौटा।" उसी शोक की ज्वाला में हम दोनों चुपचाप यू ही जल रहे हैं।

इसपर कृष्ण ने कहा यह भी तो संभव है कि कभी कभी ऐसा भी तो होता है कि समुद्र में डूब कर भी प्राणी मरता नहीं, शायद, मूर्छित हो वह कहीं दूर बह गया हो।
गुरू माता ने इस पर कहा कि इन बातों में अब कुछ नहीं रखा, झूठी सांत्वना से अब हमारी निराशा दूर नहीं होगी। अब ऐसा कोई भी नहीं जो मेरे पुत्र को वापस ला सके। पुनः उन्होंने वचन से मुक्त करने की बात दोहराई।

इसपर कृष्ण ने कहा कि -  गुरूदेव मेरा वचन कभी भी झूठा नहीं हो सकता, मै अपने प्राण देकर भी अपने वचन को पूरा करूंगा, मै अब आपके पुत्र को तीनों लोको से ढूंढ कर आपके पास लाऊंगा।
और तभी मैं अपने आप को आपके ऋण तथा गुरू दक्षिणा से मुक्त समझूंगा।


इतना कहकर और गुरू और गुरुमाता को प्रणाम कर, वह अपने भाई के साथ समुद्र की ओर चल दिए।
समुद्र के किनारे पहुंच कर उन्होंने समुद्र देवता को पुकार लगाईं। समुद्र देवता प्रकट हुए, तब उन्होंने पुनर्दत्त के बारे में पूछा।

इसपर समुद्र देवता ने बताया कि - मेरी गहराइयों में एक पांचजन्य नाम का महान राक्षस रहता है यह उसी दैत्य का काम हो सकता है। वह किनारे स्नान करने वालो को खींच कर ले जाता है और फिर मेरी गहराइयों में ले जाकर उन्हें खा जाता है। उसी ने पुनर्दत्त को खा लिया होगा।
इसपर समुद्र से उस दैत्य का पता पूछा।

तिसपर, समुद्र देवता ने बताया कि वह इस समय शून्य तल पर एक छोटे से शंख के अंदर विश्राम कर रहा है। वह मायावी राक्षस अपना शरीर छोटा कर शंख में समा जाता है और वही सुरक्षित रहता है। इसपर कृष्ण ने उन्हें वहां ले जाने को कहा।
श्री कृष्ण और बलराम जी समुद्र तल पर पहुंचे और उस शंख को देखा। इस पर कृष्ण जी ने जोर कि ध्वनि उत्पन्न कर कहा - जागो दैत्य राज तुम्हारा काल तुमसे मिलने आया है। इतने पर भी वह दैत्य न उठा। तो भगवान कृष्ण ने अपने बाण से उस शंख को समुद्र में ही जला दिया।

जलते हुए शंख से वह पांचजन्य नाम का राक्षस बाहर निकला और कृष्ण जी से युद्ध करने लगा। भीषण युद्ध हुआ और कृष्ण जी ने उसे मार दिया।


तत्पश्चात, वह दोनों भाई, यमलोक पहुंचे। यमलोक पहुंचने पर यम के द्वारपालको ने उन्हें जीवित यम के यहां जाने से रोक लिया। इसपर कृष्ण ने भयंकर शंखनाद किया, जिससे सारा यमलोक कापने लगा।
यम साक्षात उनके सामने प्रकट हो गए और प्रणाम किया और  शरीर सहित वहां आने का कारण पूछा। तब भगवान ने सारा वृत्तांत सुना दिया। इसपर उन्होंने आग्रह किया कि वह पुनर्दत्त के आत्म स्वरूप को वापस कर दे। यम ने इस निवेदन पर ऐसा ही किया।

वापस पृथ्वी पर लौट श्री कृष्ण और बलराम जी ने अपनी शक्तियों से पुनर्दत्त के शरीर को बनाया और उसे पुनर्जीवन दिया।
फिर पुनर्दत्त को लेकर वह दोनों उन्हें अपने गुरू आश्रम पहुंचे।
गुरूजी सांदीपनि और गुरुमाता आश्चर्य चकित होकर रह गए और अपने पुत्र पुनर्दत्त को जीवित पाकर अत्यंत प्रसन्न हुए।
उन्होंने कृष्ण जी को सबके दुख हरण करने का वरदान दिया और गुरू माता ने उन्हें दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया।

# निष्कर्ष - भगवान प्रेम से निवेदन करने पर असंभव फल भी अपने भक्तों को प्रदान करते हैं। 

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